आवाज उठी कोई आया है,
कोई द्वार खड़ा चिल्लाया है,
सौंधी सौंधी एक महक लगी,
कानों का पट खड़काया है,
बाहर आकर जब देखा तो,
भस्मों में लिपटा सा योगी,
ढ़ेरों रुद्राक्ष सजे माला,
तन पर है लिपटी म्रगछाला,
भक्तों का भक्ता बलशाला,
तन-मन उज्ज्वल है जसज्वाला,
एक हाथ में लठिया चन्दन की,
एक हाथ कमण्डल जलवाला,
कोई तपोबली भक्तीरोगी,
आलंक जटाएँ सतयोगी,
वो घोर तपस्वी दुखभोगी,
मेरे द्वार पे आया है जोगी,
मेरे द्वार पे आया है जोगी...........................
दम भर के साँस फुलाता है,
बम-बम भोले चिल्लाता है,
है मगन अलख में अलखराम,
भिक्षा के बोल बुलाता है,
मेरी आँखें ज्वाला रक्त-रक्त,
मेरे नियम चाल हैं सख्त-सख्त,
वरदान का आभूषण दूँगा,
मैं शिव का डमरू-भक्त-भक्त,
आ जाओ मेरे पास चलो,
तुम भली नार हो करो भलो,
आशीष सफल हो जाएगा,
तुम दूध नहाओ पूत फलो,
तुम दूध नहाओ पूत फलो.......................
सुनकर आशीष मनोहर सा,
सब पार कर धरीं सीमाएँ,
सो रोज ही हर लेता रावण,
न जाने कितनी सीताएँ,
न मानें हम सब समझाएं,
हर रोज पहाड़े पढ़वाएं,
फिर खुद की बुद्धि जाएँ,
खुद टोरें लक्ष्मन रेखाएँ,
कहती हैं न बकवास करो,
खुद अपनी नियतें साफ करो,
हम छोटे कपड़े पहनेंगी,
अब तुम हमको आजाद करो,
बुद्धि का खेत चरे चिड़िया,
रावण का पलड़ा भारी है,
सीता की बुद्धि चर गई थी,
तो तू तो बस एक नारी है,
हर गली में रावण बैठा है,
हर लड़की खुद में सीता है,
न टोरो लक्ष्मन रेखाएँ,
न समय अभी भी बीता है,
न समय अभी भी बीता है..........................
विजय वरसाल..................