अब भगवान नहीं चाहिए,
क्योंकि हर गली में एक मंदिर है,
और हर दिल में एक राक्षस।
अब भगवान नहीं चाहिए —
भगवान बहुत देख चुके हैं हम।
हजारों रूपों में, हजारों नामों में,
हर युद्ध के पहले,
हर हत्या के बाद।
अब इंसान चाहिए —
पर इंसान बनना सबसे कठिन काम है!
क्योंकि उसके लिए
ना मूर्ति चाहिए, ना मज़हब —
बस एक दिल चाहिए जो धड़कना जानता हो
दूसरे के दर्द पर।
तुम हर रोज़ पूजा करते हो,
पर किसी भूखे को रोटी नहीं देते।
तुम व्रत रखते हो,
पर किसी विधवा की चीख सुनकर
कानों में उंगलियाँ डाल लेते हो।
तुम कहते हो —
“भगवान सब देख रहा है”
हाँ, वो देख रहा है —
कि तुम इंसान बनने से डरते हो।
क्योंकि इंसान बनने का मतलब है —
गलत को गलत कहना
चाहे वो अपने धर्म, जाति या नेता के पक्ष में क्यों न हो।
इंसान बनने का मतलब है —
भीड़ से अलग चलना
जब भीड़ पत्थर उठा रही हो।
इंसान बनने का मतलब है —
किसी और की पीड़ा में अपनी आत्मा को चुभन होना।
तुम्हें भगवान इसलिए चाहिए
क्योंकि वो कभी कुछ नहीं कहता।
तुम उसके नाम पर हत्या कर दो,
तो भी वो चुप रहता है।
पर इंसान?
अगर तुम्हारे सामने मर रहा हो
तो उसकी आँखें तुम्हारा पीछा नहीं छोड़तीं।
अब भगवान नहीं चाहिए —
वो तो हर दीवार पर टंगा मिल जाएगा।
अब इंसान चाहिए —
जो किसी गिरी हुई औरत को देखकर
सहारा दे, सवाल नहीं।
पर अफ़सोस —
तुमने भगवान को पूजना सीखा है,
इंसान को अपनाना नहीं।
तो हाँ —
अब भगवान नहीं, इंसान चाहिए —
पर शायद
तुम उस धरती पर हो
जहाँ इंसान बनने से पहले
भगवान बनने की होड़ मची है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




