कदमों के हम–राह थी हवाएं, दिशाएं भी अज़नबी न थी..
दिल में जो उठी हैं लहरें, वो समंदर में भी कभी न थी..।
यूं तो वो गुनाह छुपाए फिरते हैं, बे–गुनाहों की तरहा..
मगर मेरे दिल में कभी, ऐसी ख़ता की मुआफी न थी..।
उनकी निग़ाह में हर दफ़ा, कुछ उतरते ही गए हम तो..
और करते भी क्या, इस दिल में उतनी आवारगी न थी..।
कहने को फ़िज़ाँ की शक्लों–सूरत, बेज़ार नज़र आती है..
मगर दिल के किसी कोने में, अभी शम-ए-तरब बुझी न थी..।
न दर्द बयां किया हमने, न कभी आंसू ही बहाया कोई..
मगर उनकी निगाह से, हालात–ऐ–दिल मेरी कुछ छुपी न थी..।
पवन कुमार "क्षितिज"