जीवन की अंधेर गलियों को
आओ फिर से रौशन करें
सारे ग़मों दुखों ज़ख्मों को
सुला दें तो फिर हंसते चलें।
जो आया है आगे
तो उसे सब सहना हीं होगा
भावी पीढ़ियों के लिए
सीढ़ियां तो बनना हीं होगा।
खप गए मिट गए निस्ते नाबूत
हो गए तो क्या
है यह जीवन का चक्र
इसे पर चलना हीं होगा।
अंधेरों को मिटा
उजालों को लाना हीं होगा
है पुरुषत्व कृतसंकल्पित
दृढ़ संकल्पित तो डर कैसा
आओ इन गुमनामियों से खुद
को दूर करें तो फ़िर चलें
जीवन के अंधेर गलियों को
आओ फिर से रौशन करें
सबको सूखी संपन्न करें
तो फ़िर सब चलें
उजालों की ओर चलें...
आओ उजालों की ओर चलें...