"ग़ज़ल"
शहीदों की शहादत से जो हासिल थी आज़ादी!
वो आज़ादी अब कहाॅं है हमें उस का पता दो!!
उस आज़ादी को फिर से बहाल करने के लिए!
अपने लहू का आख़िरी क़तरा तक बहा दो!!
तुम्हारे फ़र्ज़ में शामिल है हर फ़र्ज़ निभाना!
ना-इंसाफ़ी और भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाना!!
अब छीन नहीं सकता कोई अधिकार तुम्हारा!
हक़ अपना तुम्हें मालूम है हाकिम को बता दो!!
नव-शहीदों में अगर न तुम्हारा नाम आ सके!
वो जवानी क्या जो देश के न काम आ सके!!
ख़ामोश रवैये से कुछ हासिल नहीं 'परवेज़'!
तुम बुराई को ललकार कर कोहराम मचा दो!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad