तुम से मिलने के बाद कितना कुछ बदल गया। बस एक चीज़ वैसी ही रह गई... खुद से तुम्हारी बाते बतियाते रहना। यह आदत तभी से प़ड गई।
कहते हैं बचपन में ही तुम्हारी तस्वीर धुंधली सी बन गई थी। तब से ले कर अब तक, जो करना सबसे अधिक भाया वह रहा खुद से रूबरू होना और तुम्हें याद करना। क्योंकि मैं अपनी बात कहने में हिचक जाती हूँ कि कहीं सामने वाले को बुरा न लग जाए, तो अक्सर ऐसा होता है कि सामने वाले मुझ पर ही दोषारोपण कर के आगे बढ़ जाते हैं।
कभी कभी दुख होता है। परंतु फिर खुद से बातें करती हूँ और कुछ वक़्त तुम्हारे संग हो कर भी अपने मन की गहराइयों में उतर जाती हूँ। मन को शांत करने का 'उपदेश' कोई और तरीका आता ही नहीं। प्रेरित हूँ आप से और बहुत कुछ पाया आप से आभारी हूँ आपकी।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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