सोचने भर की बात थी,
और मैं सोचता भी रहा,
निहारते निहारते,
निहारता ही गया,
वो सोचना निहारना,
उनकी यादों में
दिन रात को गुजारना,
सिलसिला चलता रहा,
गुजारता चला गया,
हसीं पलों की चाह ने,
कुछ उनके ख्याल ने,
सिलसिलों की आड़ में,
वक़्त की कुछ मार ने,
हकीकतों की धुप में,
ख्वाबों की छाँव से,
सोया हुआ जब जाग गया,
वो शख्श जो 'कुछ ख्वाब' था,
वो शख्श जो कुछ 'खाश' था,
अब जो केवल 'याद' था,
अभी अभी जो 'पास' था,
दूर होता चला गया,
याद आता चला गया,
बेबाक सा मैं देखता,
एकटक निहारता रहा,
वह शख्श यहीं कहीं जो था,
वो शख्श अब वहां न था,
नहीं ये मेरा भ्रम न था,
उसका होना भी और,
उसका न होना भी
अशोक कुमार पचौरी