वो मेरी नहीं है, ना कभी मेरी होगी,
फिर भी उसकी चाहत है, तो है,
अगर यह रिति, रिवाजों, रस्मों से बगावत है, तो है,
दिलरुबा बनकर वो सताती है,
फिर भी उससे मुहब्बत है, तो है,
वो जालिम है, तो है,
फिर भी उन पर मरना मेरी फितरत है, तो है,
----धर्म नाथ चौबे 'मधुकर'