चाँद चुप था, चाँदनी में छुप के कुछ कहती हुई
रात रोई, रतजगों की राख में धीमे-धीमे जलती हुई
ख्वाब, ख्वाबों की तरह दिल पर बुनते-बुनते बिखर गए
ज़ख़्म ज़ख़्मों की तरह चुपके-चुपके सुलगते रहे
हिज्र हिज्राँ सा दायरा — जैसे समंदर की प्यास
दिल रेत सा सहरा — मगर बारिश की आस
मैं तेरे नाम को तावीज़-सा बाँध के जीती हूँ
तू मरहम-सा, फिर भी जला करे ये दिल, ये अरमान
तू सुबह — मैं रात की टूटी सी साँस
तू बाद-ए-सबा — मैं कश्ती की तन्हा प्यास
तू बात भी है, मेरी हर बे-बात की वजह भी
तू राह भी है, मेरी गुम-राह की दुआ भी
तेरी हँसी पर क़ायनात ठहर जाए तो क्या है ग़लत
तेरी ख़ामोशी क़यामत की धुन बदल दे तो भी मामूल-सी बात
इश्क़ अजब अदाओं में आकर मुझे आज़माता है
रूह रस भरी रवानी में रग-रग को जगाता है
आख़िरी पहर
तेरे नाम का दिया जलता रहा… जलता रहा…
और मैं —
खुद को बुझता भी देखा, खुद को जलता भी देखा।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







