तूफान उठा था सीने में वह तुझ पर आकर बिखर गया ,
देख मां तेरे कारण तेरा बेटा कितना निखर गया,
पहला दिन था फौज में, मैं गिरा था मैं, लड़ा था
नागरिक सारे सो रहे थे क्योंकि मैं बॉर्डर पर जो खड़ा था,
मैं गया अब कैलाश पर ,मैं पैर फिसल कर गिर गया,
मेरे अंदर के तूफान से आबू कैलाश तक हिल गया
मैं टूट पड़ा दुश्मनों पर मैं लड़ता आखिरी सांस रहा,
नागरिकों को क्या पता कितना मेरा लहू बहा,
लहू की बात अलग रही मातृ भूमि मेरा धर्म था ,
मरते दम तक में लड़ा यही मेरा कर्म था,
मैं गया तुझे छोड़ बहन तो रक्षाबंधन आनंद पर रोई थी ,
मुझे पता है तु हृदय में लाखों सपने संजोए थी,
जब पता चल बहन को भैया कल घर को आएंगे ,
भैया तेरी राह में हम घर सजाएंगे
----अशोक सुथार