पुनर्नवा
छू कर गुजरता है जब झोंका हवा का,
भोर की प्रथम किरण के साथ,
पा कर स्पर्श तुम्हारा,
हो जाता हूँ मैं पुनर्नवा।
निशा के किसी पहर में,
बैठता हूँ शीतल चाँदनी के साथ,
आ कर निकट तुम्हारा,
हो जाता हूँ मैं पुनर्नवा।
धूमिल यादों के संगम में,
बैठता हूँ जब स्मृति के साथ,
गा कर साज तुम्हारा,
हो जाता हूँ मैं पुनर्नवा।
🖋️सुभाष कुमार यादव