दलित वो कहलाते थे जो समाज के द्वारा दबाये जाते थे,
उँछ-नीच के भेदभाव से सताये जाते थे,
इतिहास बताता है जो दूसरों का मल उठाता था,
वो दलित कहलाता था।
मगर आज इसकी परिभाषा बदल गयी हैं,
आज दलित किसी एक वर्ग में सीमित ना रहकर सभी वर्गों में बँट गया हैं,
आज पैसों के आधार पर दूसरों को दलित बताया जाता हैं,
जिसके पास दौलत नहीं हैं उससे दूरी को निभाया जाता हैं।
यदि आप के पास पैसा हैं,
तो सब यही कहेंगे आप में कुछ उनके जैसा है,
आपका अनुसूचित होना भी मिथ्या बताया जायेगा,
हम इन सब को नहीं मानते यही समझाया जायेगा।
और इसके विपरीत अगर आप के पास नहीं कोई धन हैं,
भले ही आप सुवर्ण हैं,
समाज के लिए आप एक अनुसूचित वर्ण हैं ।
लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'