मैं
अपने आप को
ओपेनहाइमर के अध्ययन कक्ष में पाता हूँ।
जहाँ
भौतिकी, दर्शन और साहित्य की
महान पुस्तकें —
आपस में
संवाद करती हैं।
मैं यह सुनकर
आश्चर्यचकित हो जाता हूँ —
मानो
पुस्तकें
किसी प्रलयकारी अग्नि के समक्ष
खड़ी हों।
-प्रतीक झा 'ओप्पी'
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज