महँगा नहीं पर अपना साज-ओ-सामान होगा,
सिर्फ दर-ओ-दीवार नहीं, अपना मकान होगा।
दिन-रात एक कर लड़ रहा मुश्किलों से ताकि,
खुशियों से भरपूर, हमारा अपना जहान होगा।
मुझसे दूर हो कर खो गया अपनी दुनिया में,
मैं सोचता था वो मुझे सोच के परेशान होगा।
इसको वक्त की सज़ा समझूँ या तुम्हारी खता,
कैसे? यकीन करूँ मेरा अपना, अनजान होगा।
मैं इतना कुछ खो चुका हूँ तुम्हें पाने के लिए,
तुम मिल गई तो भी अब मेरा नुकसान होगा।
🖊️सुभाष कुमार यादव