एक लंबे इंतजार के बाद जिंदगी अंधेरों से निकलकर रोशनी में आई है,
एक मुद्दत के बाद उस मुसाफिर ने अपने घर की कुंडी खटखटाई है,
भटक रहा था अभी तक कभी इस किनारे कभी उस किनारे,
अब जाकर उसकी कश्ती अपनी मंजिल पर आई है, रुखसत कर दिया था उसने चाहत को अपनी,
मगर शमा ने फिर से परवान चढ़ाई है,
तुम अपनी उम्मीदों को यूं ही बनाए रखना,
हम मिलेंगे जरूर हमनें तुम्हारी कसम खाई है।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'