सूरज से पहले उठ जाना,
मुश्किल में भी हसते जाना,
खुद में एक गहराई लाना,
मैनें माँ से सीखा हैं।
सब्जी पुरा मोल से लाना,
रोटी एकदम गोल बनाना,
बेगैरत लोगों में भी,
खुद को तुम अनमोल बनाना,
मैनें माँ से सीखा हैं।
जीवन में कलियों सा खिलना,
होंठों को तुम कभी ना सिलना,
इस मतलब की दूनियाँ में भी,
गैरों से भी मिलना-जुलना,
मैनें माँ से सीखा हैं।
सचाई को आदर्श बताना,
वीरांगनाओं सा हर फ़र्ज़ निभाना,
दुख के सागर कितने भी हो,
जीवन में एक 'हर्ष' को लाना,
मैनें अपनी माँ से सीखा हैं।
-हर्ष पांडेय,
अशोक नगर, बशारतपुर, गोरखपुर।