लोगों के दिलों में हम बहुत खल रहे हैं,
मगर हमारे सामने उनके शब्द नहीं निकल रहे हैं।
इधर - उधर बुराई करते हैं हमारी,
वो लोग हमसे इस तरह जल रहे हैं।
इतने खटक रहे हैं हम उनकी आँखों में,
कि हमे जीते जी नर्क में धकेल रहे हैं।
मेरा जज़्बा उन्हें भा नहीं रहा,
खुशियों से मेरी अंदर ही अंदर मर रहे हैं।
~रीना कुमारी प्रजापत