क्या भारत की आजादी यही है
जाे सोचा वह कुछ भी तो नहीं है
आजादी के बाद लगाया
सभी ने आश प्रगति परन्तु हुई नहीं
खास दाे चार आदमी और दाे चार नेता
जरुर हुए अमिर बन गए विजेता
हजाराें बांकी प्रजा तो गरीब ही रही है
क्या भारत की आजादी यही है
यूं तो विकाश ये देस में हुवा है
कुछ बर्गाें के लिए ऐश आराम भी यहाँ है
बहुत सडकें बनी और बने उंचे भवन
फिर भी आदमी का भूखा पेट नंगा है बदन
उच्च बिचार सिर्फ शब्दाें में सीमट गई है
क्या भारत की आजादी यही है
उद्योग धन्दा खूले और यन्त्र चला
बेराेजगाराेें को फिर भी राेजगार न मिला
हर कोई कार्य यन्त्र ही करता जा रहा
आम-आदमी दर-दर ठाेकर खा रहा
पढे लिखे युवा पिढी भी भटक रही है
क्या भारत की आजादी यही है
आज भी बहुत लोग झाेपडी में रहते
दु:ख कष्ट सब कुछ वेह सहते
कोई लोग तो खूली आसमां निचे सो रहे
किसको क्या खबर वेह कितना राे रहे
जरा सोचीए ये कहाँ सही है
क्या भारत की आजादी यही है
अभी भी है बहुत बुरा किसीका हाल
कोई भीख मांगता ले कर एक थाल
इंसान इंसान ही नहीं पाया पहचान
हे आदमी जा कर तू कब होगा समान
हे आदमी जा कर तू कब होगा समान.......
----नेत्र प्रसाद गौतम

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




