किस कदर, छल कपटी हुआ है इंसान।
जानते हुए भी, दो दिन का है मेहमान।
मानवता को भूल गया,
गरीबों को लील गया।
मासूम सा चेहरा है,
पर बन गया हैवान।
चंद सिक्कों की खातिर,
बेच रहा, ईमान।
जुंबा है, खामोश,
देख जांच पत्रावली, बन रहा अनजान।
सत्य की बेबसी देखो,
फिर रहा मारा- मारा बारंबार।
सत्य है ये, रिश्वत लेता है,
लाओ सबूत बार-बार।
सच और झूठ के खेल में,
अपमानित हो रहा बार-बार।
लेकिन वास्तविकता कड़वी,
खुलती रहती सत्यता की खिड़की आर पार।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




