उसे मुझे याद करने की कभी फ़ुर्सत ना मिली,
मैं रही इसी इंतज़ार में कि कभी तो उसे फ़ुर्सत मिलेगी।
आज नहीं तो कल मिलेगी,
लेकिन उसे फ़ुर्सत ना तो कल मिली और ना ही
फ़ुर्सत आज मिली।
मैं ही हर वक्त उसे याद किया करती हूॅं,
पूछती हूॅं उससे कि तुम भूल गए हो मुझे।
और वो कहते हैं,
फ़ुर्सत नहीं है मुझे।
इस जहां में सभी बड़े मसरूफ़ है किसी ना किसी
काम में,
पर हम तो सिर्फ़ मसरूफ़ है अपनों को याद करने में।
जिसे किसी से प्यार नहीं उसे उसको याद करने की
फ़ुर्सत नहीं मिलती,
पर जिसे प्यार है किसी से उसे उसको याद करने
के लिए फ़ुर्सत की ज़रूरत नहीं पड़ती।
फ़ुर्सत तो बस एक बहाना है,
असली बात तो हमे याद ना करना है।
याद करने वाले कभी फ़ुर्सत के मोहताज नहीं होते,
जिन्हें याद करना है वो तो नींदों में भी याद कर लेते हैं।
🌼 रीना कुमारी प्रजापत 🌼