तन मन और धन से कर ले तू इसकी सेवा
इसी जननी माता से ही मिलेगा तुझे मेवा
बन्दें!कर लें कर लें तू मातृभूमि का सम्मान
मातृभूमि के सम्मान से देश में होगा तेरा मान
प्यारे जग में मातृभूमि ही तेरी सच्ची कर्मभूमि
कुछ ऐसा कर प्राणी बन जाएं ये तेरी तपोभूमि
इसी का अन्न और जल तुमने खाया और पीया
मातृभूमि से तुमने ये अपना सारा जीवन पाया
खा-पीकर तुम इसी प्यारी मातृभूमि पर बढ़े हुए
इसी मातृभूमि तुम्हारे सब अपने सपने सच हुए
हे!बन्दे इस मातृभूमि से बढ़कर जहां में कोई नहीं
इसी माटी से पैदा हुआ तू इसी में मिल जाना यहीं
इस अपनी प्यारी मातृभूमि की कर लें तू सदा सेवा
जग में प्यारी मातृभूमि से बढ़कर नहीं कोई खेवा
सदा सुबह और शाम मातृभूमि को कर तू वंदन
अपने माथे पर कर तू मातृभूमि से ही प्यारा चंदन
स्वरचित और मौलिक कविता
सुनील कुमार "खुराना"
नकुड़ सहारनपुर
उत्तर प्रदेश भारत