बारिश तो लाती है
खुशहाली, उम्मीदें और सृजन..
गिरते ही ज़मीं से मांगती है
प्राणियों के लिए सौंधी महक..
फल, फूल और पत्तियों की शक्ल में,
क्षुधारत प्राणियों की बिलबिलाती
आंतों के लिए तृप्ति..
सर्वप्रथम सुप्त–कण अंगड़ाइयां लेते हुए
इधर उधर ताकता है..
और धरा का संदेश ग्रहण कर
अपना जीवन रस देने को
तलाशता है कोई बीज..
जाने कहां से अनगिनत
रंग अपनी कूचियों में भरकर
फूलों और पत्तियों में रचाता है,
और धरा को
पहना देता है हरियाली की
पोशाक..
मगर अब यही बारिश कुपित होकर
दे रही है,
इंसानों के अनवरत जुर्म की सजा..
अपनी बाहों में उठाएं लाती है
पहाड़ों से पत्थरों और मलबों का ढेर,
नागिन सी फुंफकारती मैदानों में
नदियां बेकाबू हो, बहाए ले जा रही है
आशियाने, ज़िंदगी और ढेरों उम्मीदें..
आख़िर कब तक सहन करे हम
इंसानों के अत्याचार, शोषण और
असीमित क्रूरताएं..
और हमारी इंसानियत देखिए
हम अब भी दोषारोपण कर रहे हैं
बादलों, पहाड़ों पर और नदियों पर..
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




