वो अहद जो हमने आज़ादी के दिन खुद से किया था, वो रफ़्ता-रफ़्ता दम तोड़ गया है...
बड़े सुकून से दिल में ये ज़हर-ए-अना उतरता रहा हर घड़ी, कि इंसाफ़ न मिला, ज़मीर सो गया, और सवाल अधूरी कहानी रहे;
वो रिश्वतों की धूल, कुर्सी का ग़ुरूर, वो जात-पात की ज़ंजीरें, ख़ुदग़र्ज़ हाथों से लिखा मंसूर हो गए, और वतन अकेला खड़ा है;
तेरी आवाज़ तो सुनी दुनिया ने पर तेरी औक़ात समझ गए, ये कागज़ात के ढेर, ये गंदगी, ये ज़ुल्म रोज़ की बात हो गए;
तुझे बाहर की ताक़त क्या गिराती, तुझे तो तेरी 'चलता है' ने खा लिया, अब उठ कि तेरी विरासत पुकारती है, वरना इतिहास में ख़ामोशी तेरा नाम होगा।
- ललित दाधीच

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




