बाल नंद घर में हैं।।
नंद के घर,
कुछ घुंघरू टूटकर,
बिखर गए,
आश्चर्य से वो,
बाल नंद के थे,
अनायास घुंघरू रोने लगे,
बाल नंद उसी पल सोने लगे,
यही देख नंद बाबा,
देखें घुंघरू की पीड़ा को,
"क्या बात है कैसे बिखरे,
"कैसे रूठे, कैसे टूटे,
किसने किया तुमसे ये पाप,
मदनमोहन ना देखे इन घुंघरू को,
बजते थे जब तो सबको भूलकर उनको भजते थे,
आज कुछ टूट गए,
कुछ रूठ गए,
कयास यही है बजते नहीं है,
हमें तो बांधकर रखें पायल ,
पायल नंद के घर,
बाल नंद के पथ पे है,
हम सब बाल नंद के पैरों से बिछुड़ गए,
अब बाल नंद घर में है।।
- ललित दाधीच