ज़िंदगी इतने दर्द जो देने लगी है,
कि अब तेरे सहारे की ज़रूरत पड़ने लगी है।
तू सहारा दे दे तो संभल जाए हम,
पर तू तो मेरे गमों से वाक़िफ ही नहीं है।
ये ज़िंदगी हमेशा से बहुत सताती रही है,
और ये रूह मेरी हर दफ़ा संभलने की
कोशिश करती रही है।
अब थक गई है बेचारी
कब तक संघर्ष करे ,
और अब ये रूह कुछ पल तेरी पनाह में
बिताना चाहती है।
बिना कहे तू जान नहीं सकता,
और हम तुझे कह नहीं सकते हैं।
तू ज़िंदगी के दिए ज़ख़्मों को भर दे,
और हम तेरी गोद में सिर रखकर अपने गमों
को भूल जाना चाहते हैं।
"रीना कुमारी प्रजापत"
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




