मन का रावण...!
मन का रावण
तन की लंका में सजाए बैठे हो
इंद्रियों के वश में
तन मन को घुन लगाए बैठे हो...!
गेंहू की तरह पीसे जाएंगे
घुन भी साथ साथ में
सत मार्ग की उल्टी दिशा में
टकटकी लगाए बैठे हो...!
हरण भर से सदियों तक
रावण को जला रहें हैं सब
असंख्य पाप कर्म कलियुग में
अपने अंदर समाए बैठे हो...!
क्या होगी गति
जरा चिंतन करना अतंस में अपने
राम खड़े है दर के बाहर
अंदर रावण को बिठाए बैठे हो...!
इतना भी गर्त में मत गिरो
की रसातल भी शरमा जाए
काम क्रोध लोभ मद
माया की समाधी लगाए बैठे हो...!
संत चिंतन संत संग
सत्संग न सही सत्य का साथ तो दो
मन चंचल मन चितचोर
मन से हरि को भूलाए बैठे हो...!
दुर्घटना से देर भली
मत भूलो भूला शाम को लौट आए
इस तन में हरि मन में हरि
हर कण में हरि समाए बैठे है...!
मन के रावण का दहन करो
सदाचरण में जीवन निर्वहन करो
बड़े दयालु हैं ईश्वर सबके लिए
सीने से लगाने को बांहे फैलाए बैठे हैं...!
जय श्रीराम 🙏🚩
मानसिंह सुथार©️®️