तेरे शहर की गली से गुजर कर
करना क्या है...
दिल को खाक में मिलाकर
ख़्वाबों की राख का करना क्या है...
अब गली तेरी हो या जहां तेरा
कहीं से उठे धुआं
यूं आह भरना क्या है...
जहां गली में यादों के चिराग़ ही न जल सके
वहां से आती हुई हवाओं का करना क्या है...
ठिकाना बदल लिया होगा उस गली से
भ्रम रख कर यूं जिक्र करना क्या है...
----अनीता