कविता : मैं बिक गया....
हर पांच साल बाद चुनाव आना था आया
चुनाव में खड़ा प्रत्याशी ने हम को बताया
इस चुनाव में जिताना हमें
हर कुछ सभी दे देंगे तुम्हें
हमने भी आस लगाई
बोल दिया अच्छा भाई
फिर कुछ दिन बाद की थी बात जिसने
हमारे गली में छे कार्टून शराब दिया उसने
इतना ही नहीं दो बकरा काट खाने को दिया
सब के सब लोग बोले बहुत अच्छा किया
चुनाव में जो शख्स खड़ा था
वो अनपढ़ गवार एक नंबर सड़ा था
लुच्चा और लफंगा बंधा था
असल में वो बहुत गंदा था
उसने जरा खाने और पीने को क्या दिया
मोहल्ले में सभी ने उसी का गुण गान किया
इस प्रपंच में कोई बचा शेष भी नहीं
मटन और शराब से बड़ा तो देश भी नहीं
मेरे मन के अंदर जरूर लगा खुलदुली
मैं भी तो कौन सा खेत का मूली
मेरी नजर में भी शराब ही दिख गया
औरों की तरह मैं भी यार बिक गया
औरों की तरह मैं भी यार बिक गया.......
netra prasad gautam