कविता : दुख भरी संसार....
रहने के लिए
मकान न हो
खरीदने के लिए
दुकान न हो
खाने के लिए
रोटी न हो
सोने के लिए
कोठी न हो
ताकत के लिए
जवानी न हो
पीने के लिए
पानी न हो
फिर तो जिंदगी
बेकार है
बेकार क्या दुख भरी
संसार है
बेकार क्या दुख भरी
संसार है.......
netra prasad gautam