ऐ मौसम ! इस दफ़ा, मेरे चमन का लिहाज़ रखना..
गुल मासूम हैं, कुछ उनकी मर्ज़ी का मिजाज़ रखना..।
अब पहले की मानिंद, ना रहा कोई हम–सुखन..
किसको कहें कि, दर्दे–दिल का रिवाज़ रखना..।
ये मर्ज़ नया है, और दवा भी है बेअसर सी..
बस अपने हाथ में, मिरे दिल का इलाज़ रखना..।
वो भी आयेगा वक्त कि होगा इम्तिहान–ए–हस्ती तेरा..
अंधेरी गलियों में चिराग–ए–रोशनी का आगाज़ रखना..।
वक्त बदले तो बदले, मगर अपनी फ़ितरत पर निगाह रहे..
मुहब्बत में अपनी वफ़ा का जरूर इम्तिज़ाज* रखना..।
* इम्तिज़ाज़ –मिलावट, मिश्रण
पवन कुमार "क्षितिज"