जिम्मेदारी के बावजूद बचपना अन्दर।
नये नये ख्याल उत्सर्जित करता अन्दर।।
अमूमन लोग दुख पैदा करने में माहिर।
जो मिला उससे प्रफुल्लित नही अन्दर।।
जिन्दगी का रास्ता सब खुद ही बनाते।
हर गम का जिम्मेदार कोई और अन्दर।।
कुछ अजीज मेरे कहने भर के अजीज।
उन्ही की तपन महसूस कर रहा अन्दर।।
रिश्तों के बाजार में कुछ तो कीमत मिले।
अपनी खुदगर्जी से 'उपदेश' दुखी अन्दर।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद