तेरे दिल तक अगर पहुंच जाते ,
मेरे अल्फ़ाज़ मायने रखते ।
हैं तुझी से शुरू तुझ पर ख़त्म ,
मेरे अल्फ़ाज़ अब नहीं मेरे ।
इससे ज़्यादा मुझे नहीं कहना ,
तुम मेरे बाद भी मेरे रहना ।
पूंछ मत मुझे आलम ए तंहाई ,
ख़ुद के होते हुए भी तंहा हैं ।
कुछ निशां फिर भी रह गये बाक़ी ,
हमने लिख कर तुम्हें मिटाया है ।
रंग सारे तुम्हारे थे इसमें ,
मेरी तस्वीर कितनी सादा थी ।
ज़िक्र अक्सर तुम्हारा करते हैं,
तुम हमें पढ़ के देख सकते हो ।
बिख़र के तुझको दिखाऊं
ये नहीं मुमकिन ,
हम अपनी ज़ात में सिमटे हैं
अपने होने तक ।
मैं हूं तख़्लीक अपने या'रब की,
मुझको मिट्टी शुमार न करना ।
जानते हैं कि टूट जाएगा ,
तुम पे करखे यकीन बैठे हैं ।
ख़ाली -ख़ाली सा एक जहाँ हम हैं ,
तू नहीं है तो फिर कहां हम हैं ।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद