सबकी अपनी पहचान है,
सबका अलग मकान है।
कोई कहे इसे पिंजरा,
तो कोई बोले जान है।
सबके अपने ख्वाब हैं,
सबके अपने हिसाब हैं।
कोई जिए ज़मीन पर,
तो कोई उड़ता बेहिसाब है।
सबकी अपनी चाल है,
सबका अपना काल है।
कोई रोज़ जीतता भीतर,
तो किसी की बाहर धमाल है।
सबका अपना डर है,
सबके भीतर ज्वर है।
कोई छुपा के जीता है,
कोई कहे ये असर है।
सबकी अपनी दौड़ है,
सबका अपना मोड़ है।
कोई थक के बैठ जाता,
कोई कहे यही होड़ है।