गये बचपन के शौक अब जिम्मेदारी है।
उसमें उन्माद भी और तेरी बलिहारी है।।
तेरा जिंदगी में आना मील जैसा पत्थर।
इतना सुख ना दे जाती नही खुमारी है।।
थकान मिट जाती आंचल की छाँव में।
तेरे वदन की गंध सूंघने की बीमारी है।।
अनुभव जैसा जैसा होता लिख देता।
ये जीवन 'उपदेश' तुम्हारा आभारी है।।