हवाओं का इन दिनों बर्ताव अजीब है..
भरता ही नहीं ये मेरा घाव अज़ीब है..।
गैरो के दर्द पर, जश्न होता है रात भर..
मेरा नहीं, सबका ही ये चाव अज़ीब है..।
वो तो हर दिन, बदलते है शौंक अपने..
उसके तो नखरों के भी भाव अज़ीब है..।
वो तो हार कर भी हर दफा मुकरते है..
उनके तो जिंदगी से सब भाव अज़ीब हैं..।
वो इस बार भी हारते–हारते, जीत ही गए..
क्या कहूं वो अजीब है, कि चुनाव अज़ीब है..।